Monday, May 2, 2011

एक प्रकाशक का दर्द और संकल्प


यह पत्र दैनिक ‘न्यूज ऑफ जेनरेशन एक्स’ के प्रकाशक श्री मोहित कुमार शर्मा ने लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन को लिखा है, उनके पत्र को हूबहू प्रकाशित किया गया है।
मीडिया पर बढ़ते पूंजी के प्रभाव का यह नतीजा है कि चंद कारपोरेट घरानों के पास पत्रकारिता जगत सिमटता जा रहा है। किसी नामचीन बैनर के तले काम करना ही पत्रकारों के लिए मजबूरी बनता जा रहा है। बड़े समूहों पर अपनी तिजोरी खोलने वाली सरकारों ने जिस तरह से लघु पत्रकारिता को मिटाने के लिए दमनकारी नीतियों को लागू किया है, उसका असर दिखने लगा है।

लघु समाचार पत्र जितनी तेजी से निकलता है, उसका अंत भी उतनी ही तेजी के साथ होता है। महंगाई के दौर में लघु समाचार पत्र प्रसार के क्षेत्र में जिस तरह से पिटे हैं, उसका पूरा फायदा चंद समूह उठाने में कामयाब रहे हैं।

ऐसे दौर में लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन का खुलकर लघु पत्रकारिता के हितों की रक्षा के लिए मैदान में आना निश्चित ही परिवर्तन के युग का शंखनाद करेगा।

बंधुओं मैं मुरादाबाद से प्रकाशित दैनिक लघु समाचार पत्र न्यूज ऑफ जेनरेशन एक्स का स्वामी, सम्पादक, प्रकाशक एवं आपरेटर हूं। एमबीए के बाद मैंने पत्रकारिता में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद कुछ दिनों दैनिक जागरण रामपुर में बतौर रिपोर्टर कार्य किया।

इसके बाद मुरादाबाद से प्रकाशित एक अन्य लघु समाचार पत्र उत्तर केसरी में भी मुझे सिटी इंचार्ज के रूप में कार्य करने का अनुभव हुआ। नौकरी के दौरान कलम पर ब्रेक लगने के कड़वे तर्जुबों से मुझ पर बेबाक समाचार पत्र निकालने की धुन सवार हुई। बड़े उद्यम के साथ मैंने भी दैनिक समाचार पत्र का प्रकाशन किया था। क्षेत्रीय जनता एवं पाठकों ने तो मुझे कभी निराश नहीं किया तथा विज्ञापन मान्यता की समय सीमा तक मुझे बिना किसी अवरोध के पहुंचा दिया।

छह महीने का इंतजार किसी लघु दैनिक समाचार पत्र के लिए कितना मुश्किल होता है, यह भुक्तभोगी ही बता सकता है लेकिन कभी न्यूज रिप्रोडक्शन तो कभी न्यूज रिपीट की कमी बताकर डीएवीपी ने फाइल को निरस्त किया। डीएवीपी में दलाली का आलम आप जानते ही हैं।

मुझे शार्टकट बताये गये लेकिन मैंने उनका कभी इस्तेमाल नहीं किया। चार साल बतौर अखबार के मालिक मैंने कभी राज्य अथवा केन्द्र सरकार का एक भी विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया। डीएवीपी एवं प्रदेश सरकारों द्वारा अखबारों के दमन के लिए समय समय पर ऐसी नीतियां बनायी गयीं। जिसने समाचार पत्रों को सरकार के चापलूसों में परिवर्तित कर दिया। हालांकि लघु समाचार पत्रों के लिए तो उनकी चापलूसी के बावजूद भी सरकार उनके उत्थान के लिए तत्पर नहीं है।

अन्ना हजारे जिस लोकपाल बिल को लेकर महासमर कर रहे हैं तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ देश की जनता नेताओं पर हल्ला बोल चुकी है। आज पत्रकारिता जगत को भी एक ऐसे ही अन्ना हजारे की जरूरत है। यह मेरा व्यक्तिगत मानना है कि जिस तरह की शुरूआत लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन ने की है उसका असर सर्वव्यापक होगा।

असल समस्या समाचार पत्रों के बड़े मालिकों की चुप्पी से ही पैदा हुई है। एक ओर सरकारें लघु समाचार पत्रों के उत्थान का ढोल बजाती हैं, वहीं दूसरी ओर प्रसार संख्या के खेल में लघु समाचार पत्रों को उलझाकर रख दिया गया है। यदि डीएवीपी के गठन से अब तक अखबार मालिकों द्वारा पेश प्रसार संख्या के दावों की कोई भी सरकार जांच करायें तो महाघोटाला सामने आयेगा। नियमितता के आधार पर विज्ञापन जारी करने को यदि सरकार आधार बनाये तो निश्चित ही लघु पत्रकारिता का बजूद बच पायेगा।

पत्रकारों के लिए शिक्षा की अनिवार्यता जरूरी होनी चाहिए। हम भी यह प्रयास करें कि कोई अशिक्षित व्यक्ति हमारे संस्थान के आईकार्ड के सहारे पत्रकार का दर्जा हासिल न कर सके। पत्रकारों की गणना करते हुए उन्हें केन्द्रीय स्तर पर प्रेस मान्यता एवं सुविधाएं मिलें तो निश्चित ही पत्रकारिता जगत को राहत मिलेगी।

इसके बाद बात आती है समाचार पत्र के आकार की। लघु समाचार पत्र के लिए टेबलॉयड काम्पैक्ट साइज के चार पेज निर्धारित हो, चाहे समाचार पत्र दैनिक हो, या साप्ताहिक। प्रत्येक समाचार पत्र को उसकी मान्यता के समय से 100 से 500 अखबारों का कागज सरकार प्रदान करे। इसके अधिक प्रसार संख्या के लिए कागज रियायती दाम पर मिले।

मध्यम एवं बड़ी श्रेणी के अखबारों के लिए टैण्डर विज्ञापन आरक्षित हो सकते हैं लेकिन डिसप्ले विज्ञापन लघु समाचार पत्रों को मिलने चाहिए।

जैसा कि आपका भी सुझाव है लघु समाचार पत्र की श्रेणी को 100 से 1000 तक ही सीमित रखा जाये। इससे 1001 से 25000 की प्रसार संख्या मध्यम श्रेणी में हो। आरएनआई पंजीकरण के साथ ही समाचार पत्र के सम्पादक को पीआईबी की मान्यता प्रदान की जाये।

ये ऐसी मांगे थी जिन्हें कभी भी किसी भी पत्रकार संगठन एवं प्रकाशक संगठन ने नहीं उठाया। नतीजतन प्रकाशन न सिर्फ फर्जी आंकड़ों के चलते आयकर विभाग के गुनाहगार बन रहे हैं बल्कि कम प्रसार संख्या के चलते विज्ञापन न मिलने की चिंता उन्हें ज्यादा झूठ बोलने पर विवश कर रही है।

यह आप और हम सभी जानते हैं कि एक हजार अखबारों का नियमित प्रकाशन वो भी बिना विज्ञापन आय के हमारी जेब को हर समय तंग रखता है। अन्ना हजारे के करिश्मे में मुझे बल दिया। मैंने झूठी प्रसार संख्या न पेश करने का संकल्प लिया है। भले ही मान्यता न मिले, सरकारी विज्ञापन न मिले लेकिन जब तक नीति सत्य पर आधारित नहीं होगी, कम से कम मैं डीएवीपी में अपनी फाइल को जमा नहीं करूंगा।

मोबाइल से मिले संदेश ने मुझे लीड इंडिया पब्लिशर्स एसोसिएशन को समझने का मौका दिया। कलेवर तेवर से लगता है कि यह संगठन जब पूरी ताकत से खड़ा होगा तो दम तोड़ रही लघु पत्रकारिता को यह पर्वत समेत संजीवनी बूटी लाकर देगा।

लेखक परिचय: लेखक मोहित कुमार शर्मा दैनिक न्यूज ऑफ जेनरेशन एक्स के सम्पादक, स्वामी एवं प्रकाशक हैं।लेखक से संपर्क करने के लिए genxmbd1@gmail.com पर ईमेल करें।

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